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LIBRARY DEPARTMENT
पुस्‍तकालय विभाग

"Nothing is pleasanter than exploring a library."

“एक अच्छी किताब का कोई अंत नहीं होता।”     “किताब ही व्यक्ति के जीवन का आधार हैं।”

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Friday, August 6, 2021

80 th death Anniversary of Rabindranath Tagore


Tributes to Gurudev Rabindranath Tagore







Rabindranath Tagore was a Bengali polymath – poet, writer, playwright, composer, philosopher, social reformer and painter. He reshaped Bengali literature and music as well as Indian art with Contextual Modernism in the late 19th and early 20th centuries. Wikipedia
Born: 7 May 1861, Kolkata
Died: 7 August 1941, Jorasanko Thakurbari, Kolkata
Artworks: Dancing Woman, Lady with Flowers, Standing Figure, MORE
Poems: Gitanjali, Chitto Jetha Bhayshunyo, Dui Bigha Jomi, MORE








In the remembrance and Tributes to one of the greatest icons of Indian Culture and Nobel Laureate Gurudev Rabindranath Tagore on his DeathAnniversary.
His contribution to the enrichment of native Indian literature is immense and continues to inspire future generations.
The department of Library and ART is organising following two activities.
1. Drawing - Potrait of Gurudev Rabindranath Tagore
2. Slogan Collection ( 10 Quotes by Rabindranath Tagore )
Last date to submit the above activities 15.08.2021.


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All students must particiapte .


Rabindranath Tagore Biography And His Ideology In Hindi

अपने विचारों, भावनाओं और संवेदनाओं को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम मातृभाषा है। इसी के जरिये हम अपनी बात को सहजता और सुगमता से दूसरों तक पहुंचा पाते हैं। हिंदी की लोकप्रियता और पाठकों से उसके दिली रिश्तों को देखते हुए उसके प्रचार-प्रसार के लिए अमर उजाला ने ‘हिंदी हैं हम’ अभियान की शुरुआत की है। इस कड़ी में साहित्यकारों के लेखकीय अवदानों को अमर उजाला और अमर उजाला काव्य #हिंदीहैंहम श्रृंखला के तहत पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। आज इस कड़ी में एक नज़र नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचनात्मक यात्रा पर। कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ज्यादा लेखन बांग्ला में किया लेकिन उनकी लोकप्रियता हिंदी में कम नहीं है। गुरुदेव को हिंदी में विभिन्न तरह से न केवल याद किया जाता है बल्कि उनकी कविताएं व विचार अब हिंदी में भी उपलब्ध हैं।

कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। 7 अगस्त 1941 को उन्होंने कोलकाता में अंतिम सांस ली। गुरुदेव बहुआयामी प्रतिभा वाली शख़्सियत थे। वे कवि, साहित्यकार, दार्शनिक, नाटककार, संगीतकार और चित्रकार थे। विश्वविख्यात महाकाव्य गीतांजलि की रचना के लिये उन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाले वे अकेले भारतीय हैं।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और मां का नाम शारदा देवी था। स्कूली शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में पूरी करने के बाद बैरिस्टर बनने के सपने के साथ 1878 में इंग्लैंडके ब्रिजटोन में एक पब्लिक स्कूल में दाख़िला लिया। उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई की लेकिन 1880 में बिना डिग्री लिए भारत लौट आए।

रविंद्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से ऊंचे स्थान पर रखते थे। गुरुदेव ने कहा था, "जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।" टैगोर गांधी जी का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन वे उनसे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विचारों की अदला बदली, तर्कशक्ति जैसे विषयों पर अलग राय रखते थे। हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज़्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था। टैगोर ने ही गांधीजी को 'महात्मा' की उपाधि दी थी।

गुरुदेव ने बांग्ला साहित्य के ज़रिये भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान डाली। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्रगान जन-गण-मन और बांग्लादेश का राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएं हैं।

ईश्वर और इंसान के बीच मौजूद आदि संबंध उनकी रचनाओं में विभिन्न रूपों में उभर कर आता है। साहित्य की शायद ही ऐसी कोई विधा है, जिनमें उनकी रचना न हो - गान, कविता, उपन्यास, कथा, नाटक, प्रबंध, शिल्पकला, सभी विधाओं में उनकी रचनाएं विश्वविख्यात हैं। उनकी रचनाओं में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कई किताबों का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी रचनाएं पूरी दुनिया में फैली और मशहूर हुईं। गुरुदेव 1901 में सियालदह छोड़कर शांतिनिकेतन आ गए। प्रकृति की गोद में पेड़ों, बगीचों और एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की।

टैगोर ने यहां विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। शांतिनिकेतन में टैगोर ने अपनी कई साहित्यिक कृतियां लिखीं थीं और यहां मौजूद उनका घर ऐतिहासिक महत्व का है।रविंद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी ज़्यादातर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के कई रंग पेश करते हैं। अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी।


रवीन्द्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से ऊंचे स्थान पर रखते थे। गुरुदेव ने कहा था, "जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।" ईश्वर और इंसान के बीच मौजूद आदि संबंध उनकी रचनाओं में विभिन्न रूपों में उभर कर आता है। साहित्य की शायद ही ऐसी कोई विधा है, जिनमें उनकी रचना न हो - गान, कविता, उपन्यास, कथा, नाटक, प्रबंध, शिल्पकला, सभी विधाओं में उनकी रचनाएं विश्वविख्यात हैं। पेश हैं उनके कुछ विचार

उपदेश देना सरल है, पर उपाय बताना कठिन।

खुश रहना बहुत सरल है…लेकिन सरल होना बहुत मुश्किल है।

यदि आप सभी त्रुटियों के लिए दरवाजा बंद कर दोगे तो सच अपने आप बाहर बंद हो जाएगा।

दोस्ती की गहराई परिचित की लंबाई पर निर्भर नहीं करती।

संगीत दो आत्माओं के बीच अनंत भरता है।

तथ्य कई हैं, लेकिन सच एक ही है।

जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में कह नहीं सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है।

जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है।


विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं।

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